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हेपेटायटीस के संदर्भ मे समाज मे जनजागरण आवश्यक -डॉ. आशीष तापडिया

हेपेटायटीस के संदर्भ मे समाज मे जनजागरण आवश्यक -डॉ. आशीष तापडिया
अकोला - हेपेटायटीस यह उपचार से दुरुस्त होनेवाली बिमारी हैं. भारत मे इस इस रोग से ग्रस्त मरिजो की संख्या काफी हैं.हेपेटायटीस पर योग्य उपचार नही हूयें तो मरिज के प्राण जा सकते हैं. इसलिये इस  बिमारी को जान लेना अत्यावश्यक हैं. इसके लिये समाज मे जनजागरण आवश्यक हैं. ऐसा मत महानगर के प्रख्यात पेट एव लिवर विकार् तज्ञ डॉ. आशीष तापडिया ने व्यक्त किये. स्थानीय हॉटेल सिटीप्राइड सभागृह मे विश्व हैं.हेपेटायटीस दिन निमित्त हेपेटायटीस जनजागरण संदर्भ मे आयोजित पत्रकार परिषद मे डॉ.आशीष तापडिया ने हेपेटायटीस या कावीळ इस रोग की जानकारी दी.हेपेटायटीस यह लिवरपर आनेवाली सुजन की बिमारी हैं.इस सुजन का कारण पाच प्रकार के व्हायरस हैं. इसमे "हेपेटाइटिस बी" तथा "हेपेटाइटिस सी" का वायरस जादा महत्त्वपूर्ण हैं.इस व्हायरस के चपेट मे आनेवाले मरिज सर्वत्र ज्यादा संख्या मे दिखाई देते हैं. इसमे "हिपॅटायटीस बी"पर दवा उपलब्ध हैं. किंतु निरंतर लसीकरण ही इसपर  योग्य उपाय हैं. मरिजो का प्रतिशत "हिपॅटायटीस बी-2-5%" एव "हिपॅटायटीस सी-1-2%" होने का मत डॉ. आशीष तापडिया ने व्यक्त किया.इस रोग के लक्षण प्रथम दृष्ट्या मरीज को ज्ञात नही होते.इसलिये मरिज इस बिमारी से बिमार होते हैं. धिरे धीरे इस विषाणू के प्रभाव से लिवर पर सूजन निर्माण होकर पेशी नष्ट होकर लिवर कडक होता हैं. मरिज को रोग का पता लगने तक ऊसमे से आधे से ज्यादा विकृत पेशी नष्ट होकर उनकी कार्यक्षमता कम होती हैं.इस पर केवल हिपॅटायटीस बी"लस बचाव के लिये उपयुक्त हैं. 
हिपॅटायटीस अर्थात कावीळ इस विषाणू की बिमारी हूयी अथवा नही यह बात केवल खून की जाच से ही मरिज को पता लग सकती हैं.इस रोग के कारण अलग अलग हो सकते हैं.इसमे प्रमुख कारण यह हैं कि यदी घर में किसी को भी इस रोग की बाधा हूयी हो,असुरक्षित यौन संबंध,बाधित व्यक्तीयों का खून लिया हो,इस विषाणू से बाधित सुई से यदी इंजेक्शन लिया हो,टॅटू अर्थात गोदना किया हो,संक्रमण हुवा हो,दूषित पानी पिया हो तो इस रोग का असर हो सकता हैं. उन्होंने इस रोग के लक्षण की जानकारी
दी,भूक न लगना, कमजोरी, पिलापन,पिली पेशाब होना यह काविल के प्राथमिक लक्षण हैं तथा इस रोग का अंतिम स्तर लिवर का कर्करोग होना हैं. इसमे निदान होनेतक लिवर आधे से ज्यादा बेकार होकर कर्करोग हो सकता हैं.लिवर प्रत्यारोपण यह एकही उपाय इस घातक रोगपर हैं,जो लाखो मे से एक ही मरिज को मुमकिन हैं.कावीळ अर्थात हेपेटायटिस यह पाच प्रकार की होनेपर भी केवल बी एव सी यह दो हेपिटायटीस ही गंभीर तथा महत्त्वपूर्ण हैं.इसमे प्रथम "हेपेटायटिस बी" यह होकर दुसरा हेपेटायटिस सी हैं. "हिपॅटायटीस बी" यह प्रकार अत्यंत गंभीर हैं. इन दोनो प्रकार के मरीजो के लक्षण यह कुछ  प्रमाण मे समान रहते है. फिर भी हेपेटाइटिस सी मे बुखार,थकान, सरदर्द, भूक न लगना,जी मचलाना, पेट दर्द,  पेशाब सुर्ख होना,बेरंग विष्ठा आदी लक्षण दीखाई देते हैं.
हेपेटाइटिस सी मे सौ मे से पचाहत्तर लोगो मे दीर्घकालीन पुराना संसर्ग विकसित होता हैं. पुराना हेपेटाइटिस सी के 75 मे से 20 मरीज बहुत बिमार रहते हैं. इस के लिये प्रभावी उपाययोजना ही इस रोग से मरिज को बचा सकती हैं. ऐसी जानकारी डॉ. आशिष तापडिया ने इस अवसरपर दी.

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