रुणीचा अर्थात आत्मा का विश्वास हैं-शास्त्री
अकोला-रामसापिर रामदेवबाबा का पावन रुणीचा धाम यह आत्म्या का विश्वास हैं.रुणीचा अर्थात जहाँ विश्वास रखा वही रुणीचा धाम हैं.ऐसे पावन रुणीचा तीर्थ को रामदेवबाबा भकतो ने जीवन मे एक बार भेट देने का आवाहन पु आचार्य श्यामदेव शास्त्री ने किया. स्थानीय गीता नगर के रामदेवबाबा शामबाबा मंदिर मे जाती आचार्य श्यामदेव शास्त्री के रामदेवबाबा कथा के शष्टम सत्र मे आचार्य श्यामदेव शास्त्री ने रामदेवबाबा की परम शिष्या डालीबाई,रुणींचा नगर एवं पाच पीरो की कथा सुनायी.उन्होने कहा,डालीबाई की समाधी भी रामदेवबाबा के समाधी समीप हैं,इससे उसका महत्व प्रतीत होता हैं.
डालीबाई जब नवजात बालिका थी,तब वह एक पेड की डाली के पास मिली,तब से उसका नाम डालीबाई रखा गया. तथापि डालीबाई यह कृष्णरुपी रामदेवबाबा की राधा होने की बात उन्होंने कही.उन्होने आगे कहा,भगवन का अवतरण यह पुरुषार्थ या माया के लिये होता है.लंका,द्वारका एवं भगवन ने स्थापित किये रुणीचा नगरी भी माया का परिणाम थी.भगवन का अवतरण समाप्त होने पर ऐसे नगर अंतर्धान होते हैं,किंतु उनका नाम जन्म जन्मातर तक रहता है.चित्रगुप्त ने यह नगरी बसायी उसकी महिमा अद्भुत होने की बात उन्होने इस समय कही.
कथा के उत्तरार्ध मे पु शास्त्री ने रामदेवबाबा का विश्व मे प्रभाव देखते हुये सिधे मक्का से पाच मुस्लिम पीर रुणीचा मे आने कीं सुरस गाथा प्रतिपादित की. रामदेवबाबा के दृष्टांत से यह पाच पीर प्रभावित होकर उन्हे इन पाच पीरो ने पीरो के पीर यह उपाधी प्रदान की.कथा मे रामदेवबाबा के राज्यभिषेक प्रसंग पर यजमान नेहा पल्सस के संतोष नथमल गोयनका,सौ पुष्पा गोयनका,तुषार गोयनका ने पादुका पूजन किया.पं राघव द्विवेदी एवं हेमन्त दीक्षित ने आरती की.कल दि 5 सप्टेंबर को कथा की पूर्णाहुती होकर इस उत्सव का भकतो ने लाभ लेने का आवाहन रामदेवबाबा-शामबाबा सेवा समिती ने किया.
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