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It is Allah who gives respect and dignity to man: इन्सान को इज्ज़त और ज़िल्लत देने वाला अल्लाह ही है.!!

It is Allah who gives respect and dignity to man: इन्सान को इज्ज़त और ज़िल्लत देने वाला अल्लाह ही है.!! 
Ibrahim Khan Sahab, 
Akot Dist Akola
" यह इन्सानियत पर एक बड़ा ज़ुल्म होगा कि इतिहासकार इतिहास की सच्चाइयों को लेकर उन में गड़बड़ी कर दें ,और अपने किसी उद्देश्य की खातिर इतिहास को ही बदल कर रख दें "

  इतिहास हमारे जीवन पद्धति में परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, यह इन्सानियत पर एक बड़ा ज़ुल्म होगा कि इतिहासकार इतिहास की सच्चाइयों को लेकर उन में गड़बड़ी कर दें ,और अपने किसी उद्देश्य की खातिर इतिहास को ही बदल कर रख दें ।

ऐसा हर दौर में लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए किया है , निस्संदेह समाज में तो ऐसे लोग बड़ी संख्या में रहते हैं कि जिन को किसी बात की खोज में पड़ने का समय भी नहीं मिलता और न ही उनमें इतनी योग्यता होती है , इसलिए बस जो कुछ उन के सामने आता है , उसी को पढ़ते हैं ,और उसी को मान भी लेते हैं । यही वजह है कि ग़लत बाते इतिहास में प्रचलित हो जाती हैं , फिर इतिहास इस के लिए तो है नहीं कि यह देखा जाए कि किस ने सौ दो सौ साल पहले क्या किया था , और यदि किसी एक समुदाय के पुर्वजों ने कभी कोई ग़लत किया था ,तो क्या आज उस समुदाय के लोगों पर उन के ग़लत कामों के एवज़ आज ज़ुल्म किया जाय गा , बल्कि यह भी होता है कि एक क़ौम को दुसरों पर ज़ुल्म करने के लिए पहले से ही यह तैयारी करली जाती है और इतिहास में गड़बड़ी कर के लोगों के मस्तिष्क उस विशेष समुदाय के विरुद्ध कर दिए जाते हैं , इसी की आड़ में समाज का वातावरण ख़राब किया जाता है । यही सोच किसी भी देश के लिए बड़ी घातक होती है , और यही वजह है कि ही देश में देशवासी आपस में खुशहाल जीवन नहीं गुज़ार सकते ,उन में जब एक समुदाय दुसरे समुदाय के खिलाफ में अपना माइंड सेट कर तो फिर उन दोनों में आपसी प्यार मोहब्बत और भाई चारा क़ायम नहीं हो सकता ।

यही सियासत में तो स्थिरता नहीं है , यह तो ईशवरिय नियम के तहत लोगों को एक चांस दिया जाता है यह देखने के लिए कि इस ज़िम्मेदारी को कौन कितना अच्छे ढ़ंग से निभाता है , क्या हमारे सामने देश का सौ दो सौ साला इतिहास मौजूद नहीं , अपने ही देश में इन सौ सालों में क्या कुछ नहीं हुआ , कैसे कैसे देश की सेवा करने वाले लोग आए और चले गए , हमेशा के लिए तो कोई रहने वाला नहीं , हां उन की बातें ,उन के काम ,उन के वादे ,उन का जनता के साथ किया हुआ व्यवहार यह सब रह जाए गा ,और इसी को लेकर कुछ ही दिनों तक उन की यादें रह जाए गी । कुछ तो ऐसे भी सर फिरें बादशाह गुज़रे हैं कि वो खुद को ही ख़ुदा समझ बैठे थे , और वो अल्लाह के प्रेषित की बातों को ,जोकि असल में ईश्वर ही की बातें थीं मान ने से इन्कार ही न करते , बल्कि वो चाहते थे कि यह बातें ही लोगों को न बताई जाएं , वो अल्लाह के पैगम्बर को भी अल्लाह की धरती पर अल्लाह के बन्दों तक अल्लाह के पैग़ाम को नहीं पहुंचाने दे रहे थे , और चाहते थे कि हम नहीं माने गे और किसी तक इस पैग़ाम को नहीं पहूंच ने देंगे । ज़रा पवित्र क़ुरआन में अल्लाह के एक पैगम्बर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम और उन के दौर में बादशाह नमरूद की बात चीत ,

" क्या तुमने उनको नहीं देखा, जिसने इबराहीम से उसके रब के सिलसिले में झगड़ा किया था, इस कारण कि अल्लाह ने उसको राज्य दे रखा था? जब इबराहीम ने कहा, \"मेरा रब वह है जो जिलाता और मारता है।\" उसने कहा, \"मैं भी तो जिलाता और मारता हूँ।\" इबराहीम ने कहा, \"अच्छा तो अल्लाह सूर्य को पूरब से लाता है, तो तू उसे पश्चिम से ले आ।\" इसपर वह अधर्मी चकित रह गया। अल्लाह ज़ालिम लोगों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता "

(आल बकरा आयत 258)

जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उस को बातों में पकड़ लिया ,वो खुद को खुदा कह रहा था , मौत और जीवन पर तो वो कहने लगा कि यह तो मेरे भी हाथ में है , उस ने यह सिद्ध करने के लिए कि मौत और हयात तो मेरे भी कब्जे में है , इस के लिए उस ने एक क़ैदी को छोड़ने का हुक्म दिया और दूसरे को कत्ल करने का , इस तरह वो अपने आप को मौत और जिन्दगी देने वाला समझ कर अपने खुदाई के दावे को सही साबित करना चाहता था , अब इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उस को दूसरे सवाल में ढ़ेर कर दिया , उन्होंने फरमाया मेरा खुदा सूरज को पूरब से निकालता है तू पच्चीम से निकल कर दिखा । अब भला वो क्या जवाब दे सकता ,वह तो यह सुनकर हक्का बक्का रह गया। लेकिन बड़ा ज़ालिम क्या अपनी हार मानता है , उलटे उन के खिलाफ में ही फैसला सुना दिया कि इन के लिए आग का अलाव तैयार किया जाय ,जब ज़ालिम का ज़ुल्म बड़ जाता है और लोग डरे सहमे रहते हैं तो बस उस की हां में हां मिलाते हैं , उन की ज़बाने सच्चाई के हक़ में भी नहीं खुलती , वो या तो ख़ामोश रहते हैं या ज़ालिम की बातों को अंधों की तरह मान लेते हैं ।

बस समाज की यही हालत किसी देश के लिए तबाही के रास्ते खोल देती है , और आखिर एक समय आता है , नमरुद का भी नाम व निशान मिट जाता है ,और वो निशान इबरत बन कर रह जाता है ।

मानव इतिहास भरा पड़ा है , इन्सानी राजे महाराजे और बादशाहों से , जिन लोगों ने ईश्वर का पहुंचाना और उस का आज्ञा पालन करते हुए शासन का कारोबार चलाया ,वो तो इतिहास में कद्र की निगाहों से ही देखें जाएं गे ।

बस यह बात सत्ता के सिलसिले में हमेशा याद रखना चाहिए कि पवित्र क़ुरआन में फ़रमाया गया है ,

कहो, \"ऐ अल्लाह, राज्य के स्वामी! तू जिसे चाहे राज्य दे और जिससे चाहे राज्य छीन ले, और जिसे चाहे इज़्ज़त (प्रभुत्व) प्रदान करे और जिसको चाहे अपमानित कर दे। तेरे ही हाथ में भलाई है। निस्संदेह तुझे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है

(आल ए इमरान आयत26)

अतः यह बात पवित्र क़ुरआन से साफ हो जाती है कि जो भी किसी को सत्ता मिलती है तो यह भी उस की मशियत है । उस अल्लाह ने ही इन्सान को यह सत्ता करने का चांस दिया है , और जब वो यह सत्ता छीन लेने पर आजाए , तो फिर कोई उसे सत्ता पर क़ायम नहीं रख सकता।

इन्सान को इज्ज़त और ज़िल्लत देने वाला अल्लाह ही है ।

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